खुद से प्यार करना

खुद से प्यार करना : एक दिन ऐसा आएगा जब तुम्हें एहसास होगा कि अच्छा होने से कोई फ़ायदा नहीं है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ है। कोशिश करना कि इसे सिर्फ पढ़े ना बल्की महसुस करे। मेरे साथ कई बार हुआ है, और यकीनन मैं बहुत अच्छी भी हूं, और मैं अच्छी थी भी, लेकिन तब मैं और अब बहुत फर्क आ गया है। मैंने कई दफा कोशिश की है, कि मैं लोगों को खुश रखूं, मेरे आस पास वाले चाहे जो भी लोग हो बस मेरे परिवार को छोड़ कर, हर बार कोशिश की है कि उन्हें अजीब ना लगे मेरे यहां होने से या कभी मैं उनको फालतू ना लागू। सिंपल शब्दों में कहू तो मुझे डर रहता है कि, कहीं मैं अकेली ना पड़ जाउ। मुझे हमेशा उन लोगों की तरह बनना था जो हमेशा मज़ा करते रहते थे, जोक मारते रहते हैं, या गलत-गलत अजीब-अजीब बातें बोलते हैं जो कोई भी बोल्ड लड़की बोलती है या एक बिगड़ी हुई लड़की या लड़के बोलते हैं।

हालांकि इतना मैं निश्चित रूप से थी कि जो लोग गाली देते हैं उनको दोस्त नहीं बनाउंगी, लेकिन अब मैं उनमें से एक हूं, जैसा कि हमेशा ही बोला जाता है। वक्त बदलता रहता है और साथ ही साथ सोच और नजरिया भी बदलता है। बदलाव को स्वीकार करना ज़िंदगी का हिस्सा है। सब बदले और मैं भी बदली, कुछ ज्यादा ही बदली।

मेरे हिसाब से नेचुरल लड़की जो मेकअप नहीं करती थी वो सुंदर होती है। लेकिन अब सब बदल गए हैं, अब मुझे लगता हैं लड़की को मेकअप भी करना चाहिए जिससे लड़कियां और सुंदर और कॉन्फीडेंट लगती हैं, तो मैं भी बदलूंगी। बदलाव को स्वीकार करना जरुरी हैं।

खुद से प्यार करना
खुद से प्यार करना

मैं बदली क्योंकि मुझे कोई अच्छा लगा और मैं उसे जैसा बनाना चाहती थी, मैं बदली क्योंकि जो मैं थी या जैसा मेरे आस पास का माहौल था, वो हमेशा एक जैसा नहीं हो सकता था। मैं बदली क्योंकि मुझे पता नहीं था बड़ा होना इतना भी मजेदार नहीं होगा। और जिम्मेदारियाँ जो हमें एहसास दिलाती हैं कि मैं आराम नहीं कर सकती। और मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं हैं, क्योकि ये जरुरी था। मैं खुल के प्यार नहीं कर सकती। हां सही लिख रही हूं मैं। मुझे डर था, कि अगर मैं आराम करूंगी तो मेरी जल्दी शादी हो जाएगी और क्योंकि मैंने अपनी काबिलियत अगर दिखाई नहीं तो घरवाले शादी के अलावा क्या ही सोचेंगे मेरे लिए, दूसरा डर ये था कि अगर मैंने प्यार कर लिया फिर कहीं घरवालों को पता ना चल जाए तब तो पक्का मेरी शादी ही होगी। इसमें कोई शक नहीं है। कहीं न कहीं मुझे ये भी लगता था कि मैं फैंटेसी में खो जाऊंगी या करियर पर फोकस नहीं कर पाऊंगी। कुछ पाने के लिए मैंने बोहोत चीजों से दूर भागी या बची हु। लेकिन मैं खुश हु मैंने आपने आप को समझने के लिए उतना ही समय दिया जितना एक लड़की या लड़का एक दूसरे को समझने के लिए देते हैं। अब मुझे मुझसे बेहतर और कोई नहीं जानता। खुद का बेस्ट वर्जन बनाना चाहती हूं। मैं खुद से प्यार करना सीख गई हूं।

सच में मैं खुश हूं कि मैंने खुद को डराया के रखा इन दोनों चीज़ों से। सही भय अच्छा होता है। मैंने एक बात तो नोटिस की है कि मेरे जितने भी फ्रेंड्स, रिलेशनशिप में हैं, मैं उन सब से बेहतर हूं। मैं बेहतर क्यों नहीं होगी, आखिर मेहनत की है।

मैंने हमेशा अपने दोस्तों जैसा बनने की कोशिश की लेकिन अब जरूरी नहीं है। हां मैं मानती हूं कि मैं ज्यादा ही एटीट्यूड दिखा रही हूं। लेकिन इतना बनता है मेरा। अब अगर मैं बेहतर होती जा रही हूं तो इसमें मेरा दोष नहीं है। आखिर मैं खुद का बेस्ट वर्जन बनाना चाहती हूं। अकेलापन और आत्मनिर्भरता को गले लगाकर जिंदगी जीना सीख लिया हैं।

मैंने जो अभी लास्ट लाइन लिखी है, इसी से पता चल गया होगा आपको, कि मैं अब कितना बदल गई हूं। मैं भले ही चेंज हो गई हूं, लेकिन इंसान मैं बहुत अच्छी हूं। अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं लोगों के नजरों में अच्छी हूं या नहीं। मुझे बस खुद के लिए कुछ करना हैं , लेकिन आज भी मुझे ये पता है कि अभी बहुत कुछ करना है। खुद से प्यार करना बहुत मुश्क़िल होता, और इसे सीखने में समय लगता हैं।

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खुद से प्यार करना
खुद से प्यार करना

मैं इतनी कामयाब होना चाहती हूं कि जब मैं कहीं बाहर जाऊं तो परिवार मुझसे ये कभी भी ना पूछे कि कहा जा रही हो? कब तक घर आउंगी? किसके साथ जा रही हो? हां रात हो रही अभी मत जाओ। मैं ये नहीं बोल रही कि परिवार वाले चिंता नहीं कर सकते, वो कर सकते हैं, उनका हक है आखिर। अपनी-अपनी जिंदगी में बदलाव का सबसे बड़ा कारण भी तो परिवार ही है। लेकिन इन दोनों लाइनों में बहुत अंतर हैं। एक तरफ परिवार की चिंता है अपने बच्चों के लिए, तो दूसरा परिदृश्य डगमगाता हुआ भरोसा या दुनियादारी का भार जो अपने बच्चों पर लादा जाता है। दुनिया जानती हैं कैसे मासूमियत का फ़ायदा उठाना चाहिए।और मैं चाह कर भी खत्म नहीं कर सकती। अब जब मैं धीरे-धीरे दुनियादारी और खुद को समझने लगी हूं। उसी समय से मैं एक बात समझने लगी कि बड़े लोग मासूमियत का फ़ायदा उठाना जानते हैं। और मैंने भले ही अपने दोस्तों के लिए बहुत कुछ किया है। मैंने कभी भी उनको चोट पहुंचाई या उनका फ़ायदा उठाने की कोशिश नहीं की। मैं हमेशा अपने दोस्त जैसा बनना चाहती थी। और हमेशा कोशिश की है कि उनकी मदद करूं और कभी उनको चोट न पहुंचे। लेकिन कुछ लोग मासूमियत का फ़ायदा उठाना जानते हैं।

मुझे नए दोस्त बनाना पसंद था और अभी भी है। लेकिन अब मैं हमेशा सुबह उठ कर एक ही लाइन अपने मन में बोलती हूं कि अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लोग क्या सोचेंगे मेरे बारे में, आस-पास वाले क्या सोचेंगे या मेरे पड़ोसी, मेरे दोस्त, मेरे भाई बहन, मेरे मम्मी पापा क्या सोचेंगे।

सच में अब मुझे कुछ नहीं फर्क पड़ता, बस एक ही इंसान है जिसे मुझे सच में फर्क पड़ता है — वो सिर्फ और सिर्फ मैं खुद हूं और कोई नहीं। मैं ही अपनी कहानी का मुख्य पात्र हूं। जो स्थिति के हिसाब से अलग-अलग रूप दिखाती हूँ।

अब मैं खुद से प्यार करना सीख गई हूं और मैं खुद से बहुत प्यार करती हूं। मैं बहुत खुश हूं कि मैंने अपना इतना अच्छे से ख्याल रखा है।जैसा कि मैंने कहा था कि डर मेरे सेहत के लिए अच्छा है। इसी वजह से अब मैं ज्यादा अच्छा बनने की कोशिश नहीं करती सिर्फ उन लोगों के सामने जो डिजर्व नहीं करते।

मैं नहीं चाहती कि कोई मेरे मासूमियत का फ़ायदा उठाना /उठाए। मैं नहीं चाहती कि कोई मुझे इस्तेमाल करे और लोगों के कारण से मैं खुद को चोट पहुंचाऊं। इसलिए अब मैंने अपनी नादानियों को संभाल कर रखा है। जो अब सिर्फ चुनिंदा लोग ही देख सकते हैं। क्योकि अब मैं अकेलापन और आत्मनिर्भरता दोनों समझ गई हूँ।अब मैं अकेलापन और आत्मनिर्भरता को गले लगाकर जिंदगी जीना सीख रही हूं।
मैं किसी को चोट नहीं पहुंचा सकती। क्योकि कुछ लोग सच में नादान होते हैं, वो लोग चाह कर भी चालाकी नहीं समझ पाते हैं, जिस वजह से मैंने हमेशा खुद को ऐसे लोगो से बचाया हैं। एक चीज तो मैं समझ गई हूं — मेरी नादानियां भले ही कहीं लॉक हैं लेकिन कुछ लोग जो मेरे अपने हैं, मैं उनका इस्तेमाल नहीं करूंगी। उनको चोट पहुंचाने की कोशिश नहीं करूंगी। जो अब सिर्फ चुनिंदा लोग ही देख सकते हैं।

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